शीशम बहुगुनी औषधि

शीशम बहुगुनी औषधि 

सभी जगह पर आसानी से मिलने वाला शीशम त्वचा रोगों, कुष्ठ रोगों, धातु रोगों, पीरियड्स के रोगों, प्रमेह, जोड़ों के दर्द, उल्टी के रोगों में अत्यंत प्रभावकारी है.


शीशम सर्वत्र पाया जाने वाला  वृक्ष है. असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान सहित सम्पूर्ण भारत में बहुतायत से मिलने वाला छायादार वृक्ष है, ये प्राय सड़कों के किनारे लगा हुआ मिल जाता है. यह छोटा किन्तु सघन, चिकनी, चमकीली पत्तियों वाला एक स्वच्छ दिखाई देने वाला वृक्ष है. पत्तियां, संलंग्न किनारे एवम नुकीले शीर्श्वाली, जालीय विन्यास युक्त होती हैं. फूल छोटे छोटे एवम गुच्छों में विकसित होती हैं. फल चपटे, फलीदार 2-4 बीजों वाले होते हैं. इस वृक्ष की लकड़ी अत्यंत मजबूत होती है, इसलिए फर्नीचर, इमारत आदि में इसका अधिक प्रयोग किया जाता है

Properties

शीशम एन्टीआक्सीडेन्ट, वायोकनिन, टेक्टोरिजेनिन, एन्टीफ्ररेटिक, एन्टीफलेमेन्टरी, एन्टीएरेटिक, र्लाविडल, एन्टीपलास्टिमोल, एन्टीडाईहोरियल, एन्टीबैक्टीरियल आदि योगिक तत्वों गुणों से सम्पन पाई गई है। आर्युवेदिक औषधि के रूप में शीशम सफल करगर औषधि है।


शीशम के औषधीय महत्व.

त्वचा रोगों में. /Good for skin

त्वचा में उत्पन्न होने वाले कृमि अथवा एक्जिमा के उपचारार्थ सम्बंधित स्थान पर शीशम के बीजों का तेल लगाना हितकारी है. इसके लगाने से 2 सप्ताह के भीतर ही रोग से निवृति होती है. इसका तेल बीजों के संपीडन से प्राप्त किया जा सकता है.

कुष्ठ रोग उपचारार्थ

कुष्ठ रोग में शीशम कि लकड़ी के सत्व से स्नान करने से प्रयाप्त लाभ की प्राप्ति होती है अथवा सम्बंधित व्यक्ति को इसकी कुछ ताज़ी काष्ठ को जल में उबालकर ठंडा कर उस जल से स्नान करना चाहिए. इस लिए 500 ग्राम ताज़ी लकड़ियों को कुछ समय तक जल में उबालकर उस जल को छानकर उससे स्नान करना चाहिए.

जुकाम होने पर.

सर्दी जुकाम की स्थिति में शीशम के 8-10 पत्तों को एक गिलास जल में उबालकर जल में उबालकर जल को आधा रहने तक पकाएं.इसके पश्चात इसे छानकर इस अर्क का सेवन करें. मात्र 1-2 बार के इस प्रयोग से सर्दी का प्रकोप दूर होता है.

पीरियड्स में अति रक्तस्त्राव (अत्यात्रव)

स्त्रियों में मासिकधर्म के दौरान अत्यधिक रक्त आना अत्यात्रव कहलाता है. इस रोग के निवारणार्थ रात्रि के समय शीशम की कुछ पत्तियों को स्वच्छ जल में गला दें. सुबह के समय पत्तियों को जल से अलग करके इस जल को पीने से अत्यात्रव में लाभ होता है.

प्रमेह रोगों में.

प्रमेह रोगों में शीशम की छाल का काढ़ा पीने से लाभ होता है. इस लिए 50 ग्राम छाल को 2 गिलास जल में आधा रहने तक उबालकर काढ़ा बनाये.

धातु रोगों में.

शीशम के पत्ते 8-10 ले कर इसमें 25 ग्राम मिश्री मिला कर घोट पीसकर प्रातः काल शौच जाने के 15 मिनट बाद साधारण जल से नियमित सेवन करने से धातु रोगों में लाभ होता है.

उल्टी में.

शीशम की छाल का जल में बनाया हुआ काढ़ा लाभ करता है. काढ़ा उपरोक्त विधि अनुसार बनायें तथा 2-2 चम्मच 2-2 घंटे से लें.

जोड़ों के दर्द में.

शीशम के बीजों का तेल और घासलेट मिलाकर उससे मालिश करने से जोड़ों के दर्द में बहुत लाभ होता है.

आंखों के लिए शीशम / Good for Eyes

आंखों में जलन, आंखें लाल होना, आंखें दर्द होना। इस तरह की समस्या में शीशम के हरे पत्तों को साफ सुथरी जगह बारीक पीसकर 2-3 बूंदे शीशम पत्तियों का रस आंख में डालने से आंखों की समस्या विकारों से तुरन्त छुटकारा मिलता है। प्राचीन वैद्य शीशम का सूरमा आंखों के रोग दूर करने के लिए बनाया करते थे।

कैंसर में शीशम / Shisham Tree Leaves for Cancer

कैंसर होने पर रोज सुबह शाम शीशम हरे पत्तों का 1-2 चम्मच रस दाल चीनी पाउडर के साथ मिलाकर सेवन करने से तेजी से कैंसर में सुधार होता है। 30-40 दिन लगातार सेवन कर जरूर देंखें। आर्युवेद औषधि असर धीरे धीरे करती है। परन्तु बीमारी जड़ से समाप्त कर देती है।

पाचन शक्ति बढ़ाये शीशम रस / Good for Digestion

लीवर कमजोर, पाचन में गडबडी होने पर शीशम के 1-2 पत्ते रोज सुबह खाली पेट चबाकर खाने से पेट पाचन समस्याऐं दूर हो जाती है।


नोट: अस्थमा और डायबिटीज के मरीज शीशम के जूस रस का सेवन न करें।

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